Friday, April 3, 2009

इश्क करने की सजा, 34 कोड़े

ये इश्क नही आसान , इतना ही समझ लीजिये इक आग का दरिया है और डूबके जाना है। किसी ने ठीक ही कहा है के प्यार की मंजिल आसान नही। पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत में 17 साल की एक युवती को प्यार करने की भारी कीमत चुकानी पड़ी। उसे 34 कोड़े मारने की सजा सुनाई गई। किसी ने पूरे घटनाक्रम को अपने मोबाइल फोन पर शूट कर लिया। और अब दुनिया इस दुखद घटना का वीडियो देखकर हैरान है। साफ है कि प्रांतीय सरकार से शांति समझौता करने के बाद स्वात में आतंकियों का एकछत्र राज है। वे अपना दायरा बढ़ा रहे हैं।
यह घटना दो हफ्ते पहले की है। वीडियो फुटेज में लड़की को बुरी तरह पिटते दिखाया गया है। फुटेज में लड़की बुर्का पहने दिख रही है। आतंकियों ने उसे पेट के बल जमीन पर लिटाया हुआ है। एक ने उसके पैर और दूसरे ने सिर को पकड़ रखा है। तीसरा उसकी पीठ पर कोड़े बरसा रहा है। लड़की चीख-चीखकर रहम की भीख मांग रही है। यह दृश्य सभ्य समाज के लिए भले ही अनजाना और दहला देने वाला हो लेकिन तालिबान का न्याय तो यही है। पश्चिमी देश पहले ही समझौते को भविष्य के लिए घातक करार दे चुके हैं। उनके लिहाज से ऐसा करना तालिबान और अल कायदा को सुरक्षित पनाह देने जैसा है। लेकिन देखना यह है कि यहां की स्थानीय जनता कब तक अपने जज्बातों की बलि चढ़ाती रहेगी।

Tuesday, March 31, 2009

संसद भवन का इतिहास




दुनिया के सबसे बड़े संसदीय लोकतंत्र का मंदिर है संसद भवन। आम चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही सबकी निगाह इस इमारत पर टिकी हुई हैं। आइए डालते हैं एक नजर इसके इतिहास पर-

नई दिल्ली स्थित संसद भवन स्थापत्य का अद्भुत नमूना है। इस भव्य भवन का डिजाइन मशहूर वास्तुविद ल्यूटियंस ने तैयार किया था और सर हर्बर्ट बेकर के निरीक्षण में निर्माण कार्य संपन्न हुआ था। खंभों तथा गोलाकार बरामदों से निर्मित यह भवन पुर्तगाली स्थापत्यकला का असाधारण नमूना है। गोलाकार गलियारों के कारण इसको शुरू में 'सर्कुलर हाउस' कहा जाता था।
संसद भवन का निर्माण कार्य छह वर्षो तक चला था। इसका शिलान्यास 12 फरवरी 1921 को ड्यूक आफ कनाट ने किया था, जबकि उद्घाटन तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने 18 जनवरी 1927 को किया था। संपूर्ण भवन के निर्माण कार्य में कुल 83 लाख रुपये की लागत आई थी।
गोलाकार आवृत्ति में निर्मित संसद भवन का व्यास 170.69 मीटर का है तथा इसकी परिधि आधा किलोमीटर से अधिक (536.33 मीटर) है, जो करीब छह एकड़ में फैला है। संसद भवन के पहले तल का गलियारा 144 मजबूत खंभों पर टिका है। प्रत्येक खंभे की लंबाई 27 फीट (8.23 मीटर) है। बाहरी दीवार ज्यामितीय ढंग से बनी है तथा इसके बीच में मुगलकालीन जालियां लगी हैं। संसद भवन में 12 द्वार हैं, जिनमें गेट नंबर 1 मुख्य द्वार है।
संसद भवन के निर्माण में भारतीय शैली के भी स्पष्ट दर्शन मिलते हैं। प्राचीन भारतीय स्मारकों की तरह दीवारों तथा खिड़कियों पर छज्जों का इस्तेमाल किया गया है। इसी तरह संगमरमर की जालियों का उपयोग किया गया है।
संसद भवन देश की सर्वोच्च विधि निर्मात्री संस्था है। इसके प्रमुख रूप से तीन भाग हैं: लोकसभा, राज्यसभा और केंद्रीय कक्ष।

[लोकसभा]
लोकसभा कक्ष अर्धवृत्ताकार है। यह करीब 48,00 वर्ग फीट में स्थित है। इसके व्यास के मध्य में ऊंचे स्थान पर स्पीकर की कुर्सी स्थित है। लोकसभा के अध्यक्ष को स्पीकर कहा जाता है। सर रिचर्ड बेकर ने वास्तुकला का सुंदर नमूना पेश करते हुए काष्ठ से सदन की दीवारों तथा सीटों का डिजाइन तैयार किया था। स्पीकर की कुर्सी के विपरीत दिशा में पहली भारतीय विधायी सभा के अध्यक्ष विटठ्ल भाई पटेल का चित्र स्थित है।
अध्यक्ष की कुर्सी के नीचे की ओर पीठासीन अधिकारी की कुर्सी होती है जिस पर महासचिव बैठते हैं। इसके पटल पर सदन में होने वाली कार्यवाई का ब्यौरा लिखा जाता है। मंत्री और सदन के अधिकारी भी अपनी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखते हैं। पटल के एक ओर सरकारी पत्रकार बैठते हैं।
सदन में 550 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। सीटें 6 भागों में विभाजित हैं। प्रत्येक भाग में 11 पंक्तियां हैं। दाहिनी तरफ 1 तथा बायीं तरफ के 6 भाग में 97 सीटें हैं। बाकी के चार भागों में से प्रत्येक में 89 सीटें हैं। स्पीकर की कुर्सी के दाहिनी ओर सत्ता पक्ष के सांसद बैठते हैं और बायीं ओर विपक्ष के सांसद बैठते हैं। डिप्टी स्पीकर बायीं ओर की पहली पंक्ति में बैठते हैं। कक्ष के चारों ओर 35 डिजाइन रेखांकित हैं। यह अविभाजित भारत के राज्यों, डोमिनियन तथा अन्य ब्रिटिश क्षेत्रों का नमूना पेश करता है।
[दर्शक दीर्घा]
सदन के पहले तल पर कई गैलरियां बनाई गई हैं। प्रेस गैलरी अध्यक्ष की कुर्सी के ऊपर होती है। दर्शक दीर्घा, प्रेस दीर्घा के ठीक सामने की ओर होती है। प्रेस गैलरी के बायीं ओर स्पीकर गैलरी, राज्य सभा गैलरी तथा विशेष गैलरी होती है। प्रेस दीर्घा के दाहिनी ओर कूटनीतिक और गण्यमान्य व्यक्तियों की गैलरी होती है।
[ध्वनि प्रबंधन]
लोकसभा में माइक्रोफोन प्रणाली की समुचित व्यवस्था है। प्रत्येक सीट पर एक संवेदनशील माइक्रोफोन लगाया गया है। कुछ चुनिंदा स्थानों पर बेंच के नीचे की ओर शक्तिशाली माइक्रोफोन लगाए गए हैं। इसके अलावा बेंच के पीछे की ओर लाउडस्पीकर लगाए गए हैं। गलियारों में कुछ छोटे प्रकार के लाउडस्पीकर भी लगाए गए हैं।
[भाषा का चयन]
सदन की कार्यवाही का अनुवाद अंग्रेजी और हिन्दी में बारी-बारी से होता रहता है। असम, कन्नड़, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, उडि़या, पंजाबी, संस्कृत, तमिल और तेलुगु आदि भाषाओं का भी अंग्रेजी और हिंदी में अनुवाद होता रहता है। जिस भी सदस्य को इनमें से किसी भाषा में बोलना होता है, उसको पीठासीन अधिकारी को पहले से सूचित करना पड़ता है। अनुवाद केवल हिंदी और अंग्रेजी में ही होता है।
[मतदान प्रक्रिया]
सदन में स्वचालित मतदान तंत्र है। सभी सदस्य अपनी सीट से ही बटन दबाकर मतदान कर सकते हैं। स्पीकर की अनुमति से महासचिव मतदान प्रक्रिया की शुरुआत करता है। इसके पटल पर एक बटन होता है जिसको दबाने से मतदान प्रक्रिया शुरू हो जाती है। प्रत्येक संसद सदस्य हरा, लाल और पीला बटन दबाकर मतदान करता है। इनका मतलब क्रमश: हां, नहीं और अनुपस्थित होना है।
[राज्यसभा]
इसको उच्च सदन कहा जाता है। इसमें सदस्यों की संख्या 250 तक हो सकती है। उप राष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान के जरिए नहीं, बल्कि राज्यों की विधानसभाओं के द्वारा होता है। यह स्थायी सदन है। यह कभी भंग नहीं होता। इस सदन की सारी कार्यप्रणाली का संचालन भी लोकसभा की तरह होता है।
दर्शक दीर्घा, विशिष्ट अतिथि गैलरी, सभापति गैलरी, प्रेस गैलरी लोकसभा की तरह पहले तल पर स्थित होती है। इसमें भी ध्वनि उपकरण, भाषा अनुवाद, मतदान प्रक्रिया की व्यवस्था है।
[केंद्रीय कक्ष]
यह गोलाकार है। इसके गुंबद का व्यास 98 फीट (29.87 मीटर) है। यह विश्व के सबसे महत्वपूर्ण गुंबदों में से एक है। केंद्रीय कक्ष का इतिहास में विशेष महत्व है। 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारतीय हाथों में सत्ता हस्तांतरण इसी कक्ष में हुआ था। भारतीय संविधान का प्रारूप भी इसी कक्ष में तैयार किया गया था।
आजादी से पहले केंद्रीय कक्ष का उपयोग केंद्रीय विधायिका और राज्यों की परिषदों के द्वारा पुस्तकालय के तौर पर किया जाता था। 1946 में इसका स्वरूप बदल दिया गया और यहां संविधान सभा की बैठकें होने लगी। यह बैठकें 9 दिसम्बर 1946 से 24 जनवरी 1950 तक हुई।
वर्तमान में केंद्रीय कक्ष का उपयोग दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों के लिए होता है, जिसको राष्ट्रपति संबोधित करते हैं। विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के भाषण भी इसी कक्ष में आयोजित किए जाते हैं। इस कक्ष के बीच में महात्मा गांधी का चित्र लगा है। इसको प्रसिद्व चित्रकार सर ओसवाल्ड बिरले ने बनाया था। यह चित्र संविधान सभा के सदस्य ए.पी. पाटनी ने राष्ट्र को समर्पित किया था। कक्ष की दीवारों पर 12 प्रतीक चिन्ह अविभाजित भारत के बारह राज्यों के बारे में बताते हैं। महान नेताओं तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के चित्र भी दीवारों पर अंकित हैं।
[एनेक्सी]
एनेक्सी या संसदीय सौध की स्थापना 24 अक्टूबर 1975 को की गई थी। यह भवन प्राचीन और आधुनिक संस्कृति का अनोखा मिश्रण है। इसके निर्माण में मोजेक जाली का प्रयोग किया गया है। इस शैली का इस्तेमाल बौद्व चैत्यों से प्रभावित है। यह भवन 9.8 एकड़ (3.85 हेक्टेयर) भूमि पर निर्मित है जो 35,400 वर्ग मीटर में फैला है।
[लाइब्रेरी]
7 मई 2002 को संसद लाइब्रेरी या संसदीय ज्ञानपीठ का उद्घाटन किया गया। इससे पहले संसद भवन में ही लाइब्रेरी का उपयोग होता था। इस भवन का अधिसंख्य निर्माण ग्लास तथा स्टील से हुआ है।

Monday, March 30, 2009

Amazing pictures hai na!!!
















प्रतिवर्ष जुड़ते हैं तीन लाख मतदाता

आस्ट्रेलिया जितनी आबादी अपने भीतर समेटे दिल्ली में मतदाताओं की संख्या में 56 वर्षो में करीब एक करोड़ की वृद्धि हुई है। प्रथम से लेकर 15वीं लोकसभा के बीच प्रतिवर्ष करीब 1.75 लाख नए मतदाता जुड़ रहे है। वर्ष 84 के बाद से मतदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिल रही हैं। पिछले 25 वर्षो के दौरान तो प्रतिवर्ष मतदाताओं की संख्या में औसतन 3 लाख की वृद्धि हो रही है।
लोकसभा के प्रथम चुनाव में जहां मतदाताओं की संख्या करीब 9 लाख थी, वहीं इस वर्ष होने जा रहे चुनाव में करीब 1.10 करोड़ है। मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी के प्रमुख कारणों में से एक दिल्ली में रोजगार के ज्यादा अवसर होना है। मतदाताओं की भीड़ में सबसे ज्यादा लोग उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं। एक आंकड़े के अनुसार अभी कुल मतदाताओं का करीब 45 फीसदी हिस्सा पूर्वाचल के लोगों का है।
प्रारंभिक तीन लोकसभा चुनाव के दौरान (1951-62) मतदाताओं की संख्या में कोई उल्लेखनीय वृद्धि देखने को नहीं मिली। वर्ष 1951 में जहां मतदाताओं की संख्या करीब 9.50 लाख थी, वहीं 1962 में बढ़कर करीब 13 लाख हो गई। 8वें लोकसभा चुनाव 1984 तक दिल्ली में मतदाताओं की संख्या 3496781 हो गई थी। 33 वर्षो के दौरान मतदाताओं की संख्या में करीब 25 लाख की वृद्धि हुई। प्रतिवर्ष औसतन करीब 75 हजार मतदाता मतदाता सूची में जुड़ते गए।
इसके बाद मतदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि शुरू हो गई। 1984 में जहां मतदाताओं की संख्या 3496781 थी, वहीं 1089 में यह बढ़कर 5702828 हो गई। मतदाताओं की संख्या में करीब 63 फीसदी की वृद्धि हुई। मतदाताओं की संख्या में जबरदस्त वृद्धि 10वें (1991) व 11वें (1996) लोकसभा चुनाव के बीच देखी गई। वर्ष 1991 में यहां मतदाताओं की संख्या 6073156 थी, वहीं 1996 में बढ़कर 8058941 हो गई।
मतदाताओं की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि वर्तमान समय में दिखाई पड़ रही है। वर्ष 2004 से वर्ष 2009 के बीच मतदाताओं की संख्या में 23 लाख की वृद्धि हुई। 14वें लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या जहां 8712530 थी, वहीं 2009 के 15वें लोकसभा चुनाव के दौरान करीब 1.10 करोड़ हो गई। सभी लोकसभा सीटों पर औसतन करीब 16 लाख मतदाता हैं।

Sunday, March 29, 2009

न घर न ठिकाना, पर डालेंगे वोट

दिल्ली में लाखों लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास कोई ठिकाना नहीं है। वे किसी पुल-पुलिया के नीचे अथवा फुटपाथ पर गुजारा करते हैं। ऐसे लोगों को अभी तक लोकतंत्र के महापर्व में शामिल होने का मौका नहीं मिल पाता था, क्योंकि बेघर होने के कारण उनका नाम वोटर लिस्ट में शामिल ही नहीं किया जाता था, लेकिन इस बार चुनाव आयोग कोशिश कर रहा है कि ऐसे लोगों का नाम भी मतदाता सूची में शामिल किया जाए और उन्हें वोट देने का अधिकार मिल सके।
बेघर लोगों के लिए दिल्ली में काम करने वाली एक संस्था की पहल पर पहली बार चुनाव आयोग ने लाखों बेघरों के लिए मतदाता पहचान-पत्र बनाने के आदेश जारी किए हैं। एक गैरसरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक दिल्ली की करीब डेढ़ फीसदी आबादी आज भी बेघर है। इसमें वो लोग शामिल नहीं हैं जो तांगा, तिपहिया, रिक्शा या फुटपाथ को ही अपना आशियाना समझते हैं। बेघर लोगों के एक निश्चित ठौर-ठिकाने की बात की जाए तो बमुश्किल पांच हजार लोग रैन बसेरों में रहते हैं। इसके अलावा लाखों लोग शहर के फ्लाईओवर, सब-वे, गोल चक्कर तथा फुटपाथों पर अपनी जिंदगी गुजारते हैं।
बेघर लोगों के लिए राजधानी में काम कर रही गैर सरकारी संस्था 'शहरी अधिकार मंच' के संयोजक धनंजय टिंगल के अनुसार दिल्ली में लाखों ऐसे लोग हैं, जो बेघर तो हैं, किंतु शहर में किसी निश्चित जगह पर ही वर्षो से रात गुजारते आ रहे हैं। संस्था ने आयोग से गुजारिश की है कि ये लोग जिस स्थान पर बर्षो से रह रहे हैं, उन स्थानों को ही उनका पता मानकर मतदाता पहचान पत्र जारी किया जाना चाहिए। संस्था ने गत 9 फरवरी को चुनाव आयोग को एक पत्र लिखा था, जिस पर कार्रवाई करते हुए दिल्ली के संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी उदय बख्शी ने दिल्ली के सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे क्षेत्र के बेघर लोगों की पहचान कर उनका नाम मतदाता सूची में जोड़ने काम शुरू करें। इन लोगों को मतदाता पहचान पत्र कैसे मिले इस बाबत उन्होंने जिला चुनाव अधिकारी को मसविदा तैयार करने का भी आदेश दिया है।
संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी की यह पहल निश्चित रूप से यह चुनौतीपूर्ण होगी, लेकिन इससे राजधानी में सालों से गुमनाम जिंदगी जी रहे लाखों लोगों मतदान का अधिकार और पहचान तो हासिल हो ही जाएगी।