Thursday, April 9, 2009

असली और नकली संवेदना

हमारे देश के 'युवराज' को राजमहल से निकलकर गरीबों और दलितों की झोपड़ियों में झांकने का बहुत शौक है। वह कभी किसी कलावती, कभी सरस्वती तो कभी सुनीता के घर जा धमकते हैं। उनका हाल-चाल पूछते हैं। कभी उनकी सूखी रोटी का एक कौर खा लेते हैं। उन्होंने दलित की झोपड़ी में रात भी बिताई। राजकुमार के ये प्रयोजन पूर्वनियोजित होते हैं। उनके साथ मीडिया का जमावड़ा होता है। थोड़ी दूर उनका काफिला भी खड़ा होता है। राजकुमार गरीबों की दुर्दशा पर आश्चर्य और शोक प्रकट करते हैं। इसके कारणों पर वह कभी चर्चा नहीं करते और न ही उन झोपड़ियों में रहने वाले गरीब दलितों को अपने राजमहल में आकर दावत खाने या रात बिताने का निमंत्रण देते हैं। आखिर वह ऐसा क्यों करते हैं? शायद उन्हें ढाई हजार साल पहले पैदा हुए कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ के प्रति गरीबों और शोषितों की असीम, अटूट आस्था के बारे में किसी ने बताया हो। शायद राजकुमार को लगता हो कि सिद्धार्थ की तरह वह भी देशवासियों के हृदय में हमेशा के लिए स्थान पा सकते हैं। सिद्धार्थ विभिन्न कलाओं में निपुण थे। ज्ञान-विज्ञान और दर्शन में भी उनकी गहरी रुचि थी। यशोदा से उनका विवाह हुआ और एक पुत्र का जन्म हुआ। सिद्धार्थ बेहद संवेदनशील थे। वह श्रमिकों-किसानों के हकों के बारे में चिंतित रहते। शिकार करने से मना कर देते कि व्यर्थ में किसी जानवर की जान लेना अनैतिक है। वह सोचते-आखिर हम प्राणियों के बीच अंतर क्यों करते हैं? कुछ लोगों से हम प्रेम करते हैं और कुछ से शत्रुता। अपने पुत्र के जन्म के बाद सिद्धार्थ के जीवन में एक निर्णायक घटना घटी। उनके पिता ने एक पड़ोसी राज्य पर हमला करने का फैसला किया। सिद्धार्थ ने यह कहकर इसका विरोध किया कि जब पड़ोसी देश की जनता की कोई गलती नहीं है तो हमला क्यों किया जा रहा है? सिद्धार्थ की बात नहीं मानी गई तो उन्होंने अपने परिवार और राज्य को त्यागकर वनवास ले लिया। ऋषि-मुनियों की संगत और कठिन साधना से उन्होंने मानव जीवन का सार समझने की कोशिश की। आखिर गया में एक बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें तत्वज्ञान की प्राप्ति हुई और वह सिद्धार्थ से बुद्ध बन गए।
बुद्ध ने समाज के पीड़ित और वंचित वर्ग के दु:ख-दर्द दूर करने की कोशिश की। बुद्ध की जीवन यात्रा और संयम व समानता के संदेश ने उन्हें करोड़ों लोगों का मसीहा बना दिया। उनके जितने अनुयायी भारत में हैं उससे कहीं ज्यादा विदेश में। जब डा. अंबेडकर ने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को अपनाया तो उन्होंने कहा कि मुझे बौद्ध धर्म इसलिए सर्वश्रेष्ठ लगता है, क्योंकि यह तीन सिद्धांतों का मिश्रण है। बौद्ध धर्म समझदारी, करुणा और समानता का संदेश देता है। हमारे आज के युवराज गरीबों और दलितों के घरों में तो पहुंच जाते हैं, लेकिन उनकी दशा के लिए जिम्मेदार कारणों को समझने या उन्हें दूर करने का प्रयास नहीं करते। महाराष्ट्र की कलावती उन्हें बताती है कि पति के मरने के बाद उसे मुआवजे का पैसा नहीं मिल पाया। उसके घर में बिजली नहीं है। तेल की कुप्पी ही जलती है। उसे इतनी कम मजदूरी मिलती है कि वह अपने लड़के को पढ़ा नहींसकती। महाराष्ट्र में उन्हीं की पार्टी की सरकार है। अगर वह चाहते तो फोन पर मुख्यमंत्री को मुआवजा देने को कह सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वह सोच में पड़ गए। कई दिनों तक सोचते रहे। फिर अचानक संसद में भाषण देते समय वह कलावती की मुसीबत का हाल देश के सामने रख देते हैं-जब भारत-अमेरिका परमाणु करार हो जाएगा तो भारत के गांव-गांव में बिजली हो जाएगी और उस गरीब विधवा की झोपड़ी में उजाला हो जाएगा।
एक दिन वह अंग्रेज विदेश मंत्री के साथ अपने चुनाव क्षेत्र के गांव में दलित परिवार के साथ रात बिताने पहुंच जाते हैं। दोनों रात का खाना उस गरीब परिवार के साथ ही खाते हैं। अभावग्रस्त जीवन का स्वाद हर कौर के साथ उनके गले में भी उतरता है। सुबह दोनों बाहर निकलते हैं और इंतजार कर रहे पत्रकारों से मुखातिब होते हैं। राजकुमार उस परिवार की गरीबी पर अफसोस और आश्चर्य प्रकट करते हैं। अंग्रेज विदेश मंत्री भी कहते हैं कि भारत में गरीबी बहुत बड़ी समस्या है। ऐसा क्यों है, इस बारे में दोनों कुछ नहीं कहते। अगर ईमानदारी से इसके कारणों की पड़ताल करते तो उन्हें अपने पुरखों की नीतियों की आलोचना करनी पड़ती। लोग जानते हैं कि 2500 साल पहले वाले राजकुमार ने सच्चे दिल से काम किया था। उत्पीड़न और असमानता दूर करने के लिए राजमहल और परिवार हमेशा के लिए त्याग दिया था। वह आज भी उपेक्षितों और पीड़ितों के दिलों के राजकुमार हैं। हमारे आज के युवराज के निहितार्थ समाज कल्याण से नहीं, चुनाव कल्याण से जुड़े हैं।

Tuesday, April 7, 2009

अब नेताजी के काफिले में होगी कारों की भरमार

लोकसभा चुनाव में नामांकन के लिए जाते वक्त लंबी-चौड़ी कार रैली निकालने की हसरत रखने वाले नेताओं की मुश्किल चुनाव आयोग ने आसान कर दी है। दिल्ली चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों को विशेष छूट देते हुए ऐलान किया है कि वे चुनाव प्रचार के दौरान मनमानी संख्या में कारों का इस्तेमाल कर सकते हैं। चुनाव आयोग के इस फैसले से बहुत से नेताओं की बांछें खिल गई हैं।
इस बार चुनाव आयोग कार्यालय द्वारा जारी सर्कुलर के माध्यम से सभी अधिकारियों को सूचना दी गई है कि इस बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार के लिए मनचाही संख्या में कारों के इस्तेमाल की छूट रहेगी। इस बार किसी भी प्रत्याशी को चुनाव प्रचार में गाड़ी लगाने के लिए अलग से अनुमति पत्र नहीं लेना होगा। इस बार चुनाव प्रचार में प्रत्याशी चाहें कितनी भी संख्या में गाड़ियों का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन उन्हें प्रत्येक गाड़ी के बारे में सूचना एवं उसका नंबर क्षेत्र के चुनाव अधिकारी कार्यालय में दर्ज करवाना होगा।
बिना विवरण वाली गाड़ी से प्रचार होने पर संबंधित प्रत्याशी के खिलाफ चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन का मामला दर्ज कर उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
पूर्वी दिल्ली के चुनाव अधिकारी ने बताया कि प्रत्याशियों द्वारा चुनाव प्रचार में लगाई गई गाडि़यों की वीडियोग्राफी कराई जाएगी। यह काम आब्जर्वर टीमें करेंगी। ताकि प्रत्याशियों के चुनाव खर्चे पर नजर रखी जा सके और यह भी पता लगाया जा सके कि प्रत्याशियों द्वारा जमा कराया गया चुनाव खर्च का विवरण सही है या नहीं।
उल्लेखनीय है कि पिछले लोकसभा चुनाव में प्रत्येक प्रत्याशी को चुनाव प्रचार में केवल तीन गाडि़यों के इस्तेमाल की स्वतंत्रता थी। विधानसभा चुनाव में प्रत्येक प्रत्याशी को चुनाव प्रचार के लिए पांच गाडि़यों के इस्तेमाल की स्वतंत्रता दी गई थी। संख्या लोकसभा चुनाव में यह संख्या अनलिमिटेड कर दी गई है।

``टीम आडवाणी'' फिल्म जारी

भारतीय जनता पार्टी ने अगले लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिये एक लघु फिल्म ``टीम आडवाणी'' जारी की । पार्टी ने अब तक जारी तमाम आडियो वीडियो प्रचार सामग्री में पहली बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की छवि को भुनाने की कोशिश की है। भाजपा के तीसवें स्थापना दिवस के मौके पर आज यहां जारी लगभग दो मिनट की इस वीडियो फिल्म की शुरूआत 1980 को मुंबई में हुये वाजपेयी के ऐतिहासिक भाषण से की गई है । वाजपेयी ने इस भाषण में कहा था, भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं यह भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं कि अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा । इस फिल्म में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के साथ बाकी वरिष्ठ नेता और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बारी-बारी करके दिखाया गया है। पूरी फिल्म एक गीत ``देश राग'' में सिमटी हुई है जिसका मुखड़ा है ``फौलादी बाजू, अटल इरादे, दिल में गूंजे देश राग, लाखें हाथ उठाकर, देख। देश रहा है मेरा जाग।''

गृहमंत्री चिदंबरम पर जूता

गृहमंत्री पी । चिदंबरम पर ' दैनिक जागरण ' अख़बार के वरिष्ठ पत्रकार जरनैल सिंह ने 24 , अकबर रोड पर मौजूद कांग्रेस हेड क्वार्टर में प्रेस कॉन्फ्रेन्स के दौरान जूता फेंक दिया। ख़बरों के मुताबिक जरनैल सिंह 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में जगदीश टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट दिए जाने से नाराज थे।
इसी मुद्दे पर जरनैल सिंह ने गृहमंत्री से सवाल पूछा। लेकिन जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर पत्रकार ने चिदंबरम पर जूता फेंक दिया। इस घटना के बाद जरनैल सिंह ने कहा कि हो सकता है कि उनका तरीका ग़लत हो , लेकिन वह इसके लिए माफी नहीं मांगेंगे। जरनैल सिंह ने यह भी कहा कि मुझे अफसोस है कि ऐसा हुआ , ऐसा नहीं होना चाहिए। जरनैल सिंह ने कहा कि उन्हें चिदंबरम से गिला नहीं है। इस घटना के बाद जरनैल सिंह को तुगलक रोड थाने की पुलिस ने हिरासत में ले लिया। लेकिन करीब एक घंटे की पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। कुछ महीनों पहले अमेरिका के पूर्व प्रेज़िडंट जॉर्ज बुश पर इराक में एक पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने जूते फेंके थे।