Tuesday, July 14, 2009

मोबाइल शिष्टाचार सिखाएगी सरकार

अस्पताल में या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अचानक से मोबाइल की घंटी बजने पर सभी को काफी परेशानी होती है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। दरअसल सरकार ने लोगों को मोबाइल पर बात करने संबंधी शिष्टाचार सिखाने का निर्णय लिया है।
इस क्रम में दूरसंचार विभाग ने मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों को निर्देश दिया गया है कि वे सिम या मोबाइल सेट खरीदने वाले उपभोक्ताओं को मोबाइल फोन के उपयोग के बाबत जरूरी शिष्टाचार बताने के लिए लिखित सामग्री उलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करे। लोगों की सुविधा के लिए यह सामग्री अंग्रेजी के साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए है।
दूरसंचार विभाग का कहना है, ग्राहकों को मोबाइल पर बात करने के तौर तरीके सिखाना भी मोबाइल कंपनियों की जिम्मेदारी है।
गौरतलब है कि अनेक विकसित देशों में मोबाइल फोन के इस्तेमाल को लेकर नियम कायदे पहले से ही लागू हैं। अमेरिका, कनाडा और यूरोप के स्कूलों में कक्षा में मोबाइल फोन लाने की इजाजत नहीं है।

* अस्पताल, एयरक्राफ्ट, सिनेमाघर, पूजाघर जैसे सार्वजनिक स्थानों पर मोबाइल फोन को स्विच ऑफ या वाइब्रेशन पर रखें।
* ड्राइविंग करते समय मोबाइल पर बात न करे।
* किसी की जानकारी के बिना मोबाइल से उसकी फोटो न खीचें।
* मोबाइल की रिंगटोन बहुत तेज नहीं होनी चाहिए।

Monday, July 13, 2009

खुशी

सुखबीर को अपने इकलौते बेटे अमन से बड़ा लगाव था। यों तो स्कूल की वैन-सर्विस थी, लेकिन सुबह उसे स्कूल छोड़ने व दोपहर छुट्टी के समय उसे घर लाने के लिए, वह स्वयं स्कूल जाता था। वह इसी में खुश और संतुष्ट था। आज भी तपती दोपहरी में वह स्कूटर पर उसे लेने गया। लू चल रही थी। अमन आया, तो मुरझाया-सा लग रहा था। सुखबीर ने रास्ते में स्कूटर रोककर उसे ठण्डी फ्रूटी पिलाई।
अमन फ्रूटी के पैक में स्ट्रा लगाए मजे से आम का रस ले रहा था। जल्द ही खुशी से उसका चेहरा खिल उठा।
देखकर सुखवीर भी खुश हुआ। पास से सरकारी स्कूल से लौटे दो बच्चे पैदल आ रहे थे। उनके गाल रूखे व होंठ सूखे हुए थे। अमन को दुकान की छाया में फ्रूटी पीते देखकर वे जरा ठिठके।
हसरत भरी नजरों से उसे देखते रहे। फिर सूखे होंठों पर जबान फेरते हुए आगे बढ़ गए। एक ने दूसरे से कहा- 'हमारी ऐसी किस्मत कहां!' दूसरे ने हामी भरते हुए कहा- 'ठीक कहते हो, भाई!' चलते-चलते उन्हे फ्रूटी का इस्तेमाल किया हुआ खाली पैक सड़क किनारे पड़ा दिखाई दिया। एक ने कसकर पैर से उसे ठोकर मारी। पैक हवा में लहराता हुआ एक नाली में जा गिरा। दोनों बच्चों ने जोर से ठहाका लगाया और खुशी-खुशी घर को चल दिए।

थकान

थकान कई तरह की होती है। कोई चलते-चलते थक जाता है। कोई पढ़ते-लिखते थक जाता है। कोई बार-बार असफल होने पर, बार-बार लक्ष्य न प्राप्त होने पर थकान महसूस करता है। लेकिन उसकी थकान देख मैं आश्चर्य में पड़ गया था। उस बूढ़ी मां का जवान बेटा उसे अपनी गोद में उठाकर मतदान स्थल तक लाया था। मतदान स्थल उसके घर से लगभग 3 कि.मी. दूर था। उसने अपनी मां की मतदाता संख्या पर्ची आगे बढ़ाई। मतदाता अधिकारी को उसकी मां का नाम, नम्बर मतदाता सूची में तो मिला लेकिन वह मृतक सूची में था। मृतक घोषित होने के कारण वह अपनी मां का मत नहीं डलवा पाया। तब जैसी थकान उस युवक के चेहरे पर थी वैसी थकान मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। ये थकान वैसी ही थी जैसे कोई यात्री ट्रेन पकड़ने के लिए दूर से दौड़ रहा हो फिर भी ट्रेन न पकड़ पाए।
उधर बूढ़ी मां अपने बेटे का मुंह ताके जा रही थी। बोली, ''बेटा क्या हुआ? क्या मेरा वोट नहीं है?'' ''हां मां तुम्हारा वोट नहीं है किसी ने कटवा दिया है आपको मरा हुआ घोषित करवा कर।''
''तो क्या अब हम वोट नहीं दे सकते?'' ''हां मां, अब आप वोट नहीं डाल सकतीं। चलो घर चलते है।'' और निराश हो बेटा मां को फिर से पीठ पर लादकर चल दिया। बिना मतदान किए मां को लादना उसे कितना भारी पड़ रहा था। उसकी थकान कब तक मिट पायेगी मैं यह सोचता ही रह गया।