Monday, July 27, 2009

यह कैसी पूजा?

वह किसी कार्यवश अपने मित्र रमन के घर गया था। घर पर रमन मौजूद नहीं था। शायद रमन और उसकी पत्नी किसी कारण बाहर गये हों, यह सोचकर वह रमन की बीमार वृद्ध मां की ओर चला गया जो आंदर खाट पर आंखें मूंदे लेटी हुई थीं।

आहट होने पर वह बोलीं, 'आ गये रमन बेटा।' तो उसने कहा कि, 'मैं रमन नहीं, उसका मित्र विजय हूं'। 'अच्छा हुआ विजय बेटा तुम आ गये।

प्यास के कारण मेरा गला सूखा जा रहा है। जल्दी से एक गिलास पानी लाकर दे दो।' उसने उन्हे पानी दिया। पानी पीने के बाद जब उन्हे कुछ राहत महसूस हुई तब उसने रमन और उसकी पत्नी के बारे में पूछा। इस पर उन्होंने कहा कि वे दोनों पिछले दो घंटे से भी अधिक समय से मंदिर में पूजा-अर्चना करने गये है और अब तक नहीं लौटे है।

उनका इंतजार करते-करते प्यास के कारण गला सूख रहा था और तबियत भी बिगड़ने लगी थी। यह सुनकर विजय को धक्का लगा कि आखिर यह कैसी पूजा है जिसके कारण मां दवा-पानी के अभाव में घर में खाट पर पड़ी दम तोड़ रही है? जबकि वे मंदिर में घंटों से लाइन में लगे, अपनी बारी की प्रतीक्षा करते, भगवान से अपने सफल, सुखद जीवन की याचना कर रहे होंगे। उसका मूड उखड़ गया और वह जिस काम से रमन के घर गया था उसे बिल्कुल भूल ही गया।


ससुराल की इज्जात

विदाई के समय मां ने दीक्षा को समझाया- ''बेटी अपने ससुराल वालों का ख्याल रखना। आज से वही तेरा घर है। हर सुख-दु:ख में उनका साथ देना। उनकी इज्जात ही तेरी इज्जात है।'' मां के बताए संस्कारों और अपने मधुर स्वभाव से दीक्षा ने ससुराल में सभी का दिल जीत लिया।

हंसते-गाते कब एक वर्ष बीत गया पता ही न चला। लेकिन अब उसके ससुराल वाले घोर चिंता में थे। उसकी ननद की शादी होनी थी। रुपयों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। दीक्षा भी बहुत परेशान थी।

इसी बीच वह अपने मायके आई और वहां रखे हुए अपने गहने ले जाने लगी तो उसकी मां ने कहा- ''बेटी दीक्षा, ननद की शादी के लिए तू अपने गहने ले जा रही है यह तू क्या कर रही है? अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी..।''

मां की बात बीच में ही रोकते हुए वह बोली- ''मां यह आप क्या कह रही हो! आप ही ने तो मुझे बताया है कि ससुराल की इज्जात ही मेरी इज्जात है। मां, यह गहने मेरी ननद से बढ़कर नहीं है। अपनी ननद की शादी के लिए मैं हर संभव प्रयत्न करूंगी।'' और वह गहने लेकर ससुराल आ गई।