वह किसी कार्यवश अपने मित्र रमन के घर गया था। घर पर रमन मौजूद नहीं था। शायद रमन और उसकी पत्नी किसी कारण बाहर गये हों, यह सोचकर वह रमन की बीमार वृद्ध मां की ओर चला गया जो आंदर खाट पर आंखें मूंदे लेटी हुई थीं।
आहट होने पर वह बोलीं, 'आ गये रमन बेटा।' तो उसने कहा कि, 'मैं रमन नहीं, उसका मित्र विजय हूं'। 'अच्छा हुआ विजय बेटा तुम आ गये।
प्यास के कारण मेरा गला सूखा जा रहा है। जल्दी से एक गिलास पानी लाकर दे दो।' उसने उन्हे पानी दिया। पानी पीने के बाद जब उन्हे कुछ राहत महसूस हुई तब उसने रमन और उसकी पत्नी के बारे में पूछा। इस पर उन्होंने कहा कि वे दोनों पिछले दो घंटे से भी अधिक समय से मंदिर में पूजा-अर्चना करने गये है और अब तक नहीं लौटे है।
उनका इंतजार करते-करते प्यास के कारण गला सूख रहा था और तबियत भी बिगड़ने लगी थी। यह सुनकर विजय को धक्का लगा कि आखिर यह कैसी पूजा है जिसके कारण मां दवा-पानी के अभाव में घर में खाट पर पड़ी दम तोड़ रही है? जबकि वे मंदिर में घंटों से लाइन में लगे, अपनी बारी की प्रतीक्षा करते, भगवान से अपने सफल, सुखद जीवन की याचना कर रहे होंगे। उसका मूड उखड़ गया और वह जिस काम से रमन के घर गया था उसे बिल्कुल भूल ही गया।