Saturday, May 15, 2010

इतिहास के पन्नों में दफन होगा दिल्ली का तांगा

राजधानी में मुगलकाल से दौड़ने वाले तांगे को इतिहास बनाने का एमसीडी का फरमान, दिल्ली की तहजीब के साथ खिलवाड़ है। दिल्ली के इतिहास व तहजीब को भले ही मोहम्मद हारुन विस्तार ने नहीं जानते हैं, मगर उनके पुरखों ने तांगा चलाया था और वह भी तांगा चलाते वाले हैं। इनके परिवार का गुजर बसर इसी से चल रही है। दिल्ली में तांगे की सवारी पर प्रतिबंध लगाने संबंधी आदेश को तुगलकी फरमान बताते हैं। मो. हारुन जैसे सैकड़ों तांगे वाले हैं जिनके रातों की नींद आजीविका छिन जाने के डर से उड़ गई है। पुरानी दिल्ली और यमुनापार के कुछ इलाकों में चलने वाले तांगों के पहिए 31 मई से थमने संबंधी ऐलान से तांगेवालों में नाराजगी है। वे एमसीडी द्वारा वैकल्पिक रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जाने को छलावा करार दे रहे हैं। तुर्कमान गेट स्थित तांगों वालों के डेरे में खानदानी तांगा चालक मो. आजाद ने बताया कि उसके पास एमसीडी की तरफ से लिखित आदेश नहीं आया है, लेकिन तांगे व घोड़ों को दिल्ली के बार्डर पार बेचने के लिए अधिकारी दबाव बनाए रहे हैं। दिल्ली में कुल 232 लाइसेंस प्राप्त तांगे वाले हैं। इनमें से 130 तांगेवालों को यमुनापार शास्त्री पार्क में तहबाजारी के लिए लाइसेंस दिया गया है। राष्ट्रमंडल खेल के दौरान यातायात में तांगा सड़कों पर बाधक न बने इसलिए गत वर्ष 19 नवंबर को एमसीडी की स्थायी समिति ने तांगों पर रोक लगाने का निर्णय लिया था। इससे जुड़े लोगों के सामने रोजगार का संकट न खड़ा हो इसके लिए एमसीडी कमिश्नर केएस मेहरा ने सभी तांगा चालकों को नि:शुल्क तहबाजारी के तहत खोखे देने का ऐलान किया था। इसके अलावा कोई तांगा चालक सीएनजी चालित ऑटो खरीदने में इच्छुक है तो इसके लिए प्रति लाइसेंस 40 से 53 हजार रुपये बतौर अनुदान देने की घोषणा की थी। उन्होंने बताया कि तांगा यूनियनों से कई महीनों बातचीत के बाद ही यह निर्णय लिया गया। तांगेवाले तहबाजारी पर काम करने के लिए तैयार नहीं है। उनका कहना है कि तांगों से सिर्फ तांगे वाले के परिवार का गुजारा नहीं होता, बल्कि इसके साथ बहुत से कामगार तथा मजदूर जुड़े हुए हैं। एक तांगे से प्रतिदिन चार सौ से पांच सौ रुपये की आमदनी होती है।

Sunday, May 9, 2010

आप भी कर सकेंगे तख्त-ए-ताऊस का दीदार


क्या आपने उस तख्त-ए-ताऊस को देखा है, जिसे नादिरशाह लूट ले गया था? क्या आप जानना चाहेंगे कि तीन सौ साल पहले दिल्ली का नक्शा कैसा था? तीस सौ साल पहले दिल्ली में परिवहन व्यवस्था कैसी थी और क्या थे पेयजल और मनोरंजन के साधन? दो सौ साल पहले कैसी दिखती थी कुतुबमीनार और डेढ़ सौ साल पहले कैसा था जामा मस्जिद का इलाका?
इन सभी सवालों का जवाब पाने के लिए आपको राष्ट्रमंडल खेलों तक इंतजार करना पड़ेगा। जी हां, हम बात कर रहे हैं राष्ट्रमंडल खेलों की। दरअसल खेलों के दौरान दिल्ली में एक ऐसी प्रदर्शनी लगाई जाएगी, जिसमें सत्रहवीं शताब्दी के दौरान बनी कलाकृतियां प्रदर्शित की जाएंगी। इस प्रदर्शनी का आयोजन दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन द्वारा किया जाएगा। खास बात यह है कि प्रदर्शनी की सफलता के लिए 14 कलाकृतियां लंदन के संग्रहालयों से मंगाई जाएंगी।
दिल्ली के इतिहास से जुड़ीं ये कलाकृतियां लंदन के विक्टोरिया और अल्वर्ड संग्रहालय में रखी हुई हैं। देश छोड़ने के समय 1947 में अंग्रेज शासक इन्हें साथ ले गए थे। इनमें सबसे महत्व असली कलाकृति तख्त-ए-ताऊस की है, जिसकी कीमत उस समय 72 करोड़ लगाई गई थी। इसमें बेशकीमती कोहिनूर हीरा जड़ा था। शाहजहां से लेकर औरंगजेब तक मुगल शासकों ने इसी पर बैठकर शासन किया था। तख्त-ए-ताऊस को लूटकर नादिरशाह ईरान ले गया था, बाद में यह लंदन में पहुंचा।
लंदन से आने वाली कलाकृतियों में 1762 के चांदनी चौक, 1852 की जामा मस्जिद, लालकिला स्थित 1923 की मोती मस्जिद, पुराना किला, 1944 के लालकिला, दो सौ साल पहले के कुतुब मीनार के चित्र शामिल हैं। प्रदर्शनी कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू होने से एक सप्ताह पहले से शुरू होगी, जो खेलों के समापन के एक सप्ताह बाद तक चलेगी। अधिक से अधिक पर्यटक इस प्रदर्शनी को देख सकें इस उद्देश्य से इसे तीन स्थानों पर लगाया जाएगा। जिसमें लालकिला, दिल्ली विश्वविद्यालय व इंडिया हैबिटेट सेंटर शामिल हैं।

जागो पुलिस वालो, यह समय है जागने का

अभी भी समय है पुलिसवालों को नींद से जाग जाना चाहिए। इस कठोर टिप्पणी के साथ दिल्ली की एक निचली अदालत ने बच्चे के अपहरण और फिरौती के मामले में पुलिस के जांच के तरीके पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि ऐसे गंभीर मामलों की जांच डीसीपी स्तर के अधिकारी के मार्गदर्शन में की जानी चाहिए। जिससे आपराधिक मामलों में इंसाफ हो सके। अदालत ने अपने फैसले की एक प्रति उत्तर पूर्वी जिला के डीसीपी को भी भिजवाई है।
यह टिप्पणी कड़कड़डूमा कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निशा सक्सेना ने अपहरण व फिरौती के एक मुकदमे में पांच आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी करते हुए की। अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले को हलके में लेते हुए लापरवाही से जांच की। केस के तथ्यों को देखने से लगता है कि पुलिस जांच रिपोर्ट पूरी तरह से गलत, तथ्यहीन और लापरवाह है। पुलिस की इस ढिलाई से आरोपियों का अपराध साबित नहीं किया जा सका। ऐसी लापरवाही की उम्मीद पुलिस से नहीं की जा सकती।
पेश मामले में खजूरी खास थाने में 2 मार्च 2007 को सर्वेश ने अपने ढाई साल के बेटे हिमांशु की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया था। सर्वेश का बेटा घर के बाहर खेलते हुए गायब हो गया था। बाद में सर्वेश को 20 मार्च को फिरौती का एक पत्र मिला, जिसमें उसके बेटे को छोड़ने की एवज में 30 लाख रुपये मांगे गए थे। सर्वेश ने इसकी सूचना पुलिस को दी। अपहर्ताओं ने 1, 3 और 5 अप्रैल को सर्वेश के मोबाइल पर भी फोन किया। 7 अप्रैल को इस मामले की जांच सबइंस्पेक्टर सतेंद्र तोमर को सौंपी गई। पुलिस ने 17 अप्रैल को अलीगंज के देहलिया पूठ गांव में अमर सिंह के घर पर छापा मार कर वहां से दीपू, राकेश, राजकिशोर, महेश और जितेंद्र को गिरफ्तार किया। पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से हिमांशु को भी आजाद कराया। अदालत में सुनवाई के दौरान पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कुल आठ गवाह पेश किए।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निशा सक्सेना ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद पुलिस द्वारा मामले के संबंध में आरोपियों के खिलाफ पेश किए गए सबूतों को नाकाफी पाया।