Thursday, June 19, 2014

जेल से बेल पर निकले 915 कैदी फरार

पवन कुमार, नई दिल्ली

हत्या, लूट, अपहरण और डकैती की वारदातों में शामिल 915 खूंखार अपराधी दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों में खुली हवा में सांस ले रहे हैं। दिल्ली पुलिस के पास इसकी जानकारी भी है, मगर साथ में लाचारी भी है। पुलिस के पास इन अपराधियों की जन्म कुंडली तो है मगर, इन अपराधियों के पतों व अन्य जरूरी जानकारी नदारद है। पुलिस रिकार्ड में दर्ज 500 से ज्यादा अपराधियों के मकान व रिश्तेदारों के पते तक फर्जी पाए गए हैं। जिससे पुलिस अपराधियों का सुराग तक नहीं लगा पा रही है। ये सभी अपराधी दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद तिहाड़ जेल से निकले और फरार हो गए। इनमें गैंगस्टर नीरज बवाना, सत्यवान सोनू और कई ऐसे खूंखार अपराधियों के नाम शामिल हैं जो अपराध की दुनिया में पुलिस व लोगों के जी का जंजाल बने हुए हैं। इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा जेल महानिदेशक की ओर से दिल्ली हाईकोर्ट में पेश की गई एक रिपोर्ट के माध्यम से किया गया है। यह रिपोर्ट एक मृत घोषित अपराधी राजवीर सिंह उर्फ छंगा के जीवित साबित होने के बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर पेश की गई है। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर व न्यायमूर्ति सुनीता गुप्ता की खंडपीठ ने उक्त मामले को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया है कि वह इस मामले में सभी फरार अपराधियों का पता लगाए और उन्हें गिरफ्तार करे। इतना ही नहीं मामले में अपराधियों की जमानत देने वाले लोगों पर भी कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए। इस संबंध में खंडपीठ ने पुलिस को एक विशेष रिपोर्ट भी पेश करने को कहा है। अब इस मामले की सुनवाई 18 जुलाई को होगी।
जेल महानिदेशक की ओर से पेश की गई विशेष रिपोर्ट के माध्यम से बताया गया है कि दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित हत्या के विभिन्न मामलों में वर्ष 1999 से लेकर अब तक 915 कैदी हाईकोर्ट से जमानत या पैरोल लेकर फरार हो चुके हैं। इनमें से 563 कैदी ऐसे हैं। जिनके फरार होने के बाद उनके मकान व रिश्तेदारों के पते तक फर्जी पाए गए हैं। ऐसे अपराधियों का पुलिस कोई सुराग नहीं लगा सकी है। यहां तक कि इन अपराधियों की जमानत देने वाले जमानती तक फरार हैं। वहीं, अन्य जो कैदी हैं, उनके मकान के पते तो ठीक हैं, मगर अपराधी फरार हैं।
हाईकोर्ट के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर पश्चिमी और बाहरी दिल्ली में आतंक का पर्याय बने गैंगस्टर नीरज बवाना भी जमानत लेकर फरार हो गया था। इसके अतिरिक्त हत्या व फिरौती की विभिन्न वारदातों में शामिल बदमाश सुनील कुमार कालरा भी सितंबर 2012 से जमानत लेकर फरार है। लूटपाट व हत्या के कई मामलों में शामिल सत्यवान उर्फ सोनू गिरोह का मुखिया सोनी और बिजेंद्र यादव भी तिहाड़ से वर्ष 2011 में पैरोल पर रिहा हुए थे, मगर वापस नहीं लौटे।

यह था मामला

गाजियाबाद निवासी राजवीर सिंह उर्फ छंगा हत्या के एक मामले में जमानत लेकर फरार हो गया। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर व न्यायमूर्ति सुनीता गुप्ता की खंडपीठ के समक्ष एक दिन गाजियाबाद पुलिस ने मामले में छंगा का मृत्यु प्रमाण पत्र पेश किया। इस मामले में सरकारी वकील सुनील शर्मा को संदेह हुआ। उनके आग्रह पर मामले की जांच की गई तो पाया गया कि छंगा मरा ही नहीं है। बल्कि किसी ओर को मार कर छंगा साबित कर दिया गया। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने तिहाड़ जेल अधीक्षक को उन सभी कैदियों की रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा था जो जमानत या पैरोल पर जेल से निकले और फरार हो गए और उनके मामले हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं। 

Saturday, June 14, 2014

वारदात के 8 साल बाद फूटी इंसाफ की पहली किरण

पवन कुमार, नई दिल्ली 

बेटे की मौत का बोझ मन पर लिए एक 70 साल की बुजुर्ग विधवा आठ साल तक बेटे की हत्या की एफआईआर दर्ज कराने के लिए दिल्ली पुलिस के तमाम नौकरशाहों व मंत्रियों के चक्कर काटती रही, मगर किसी का भी दिल वृद्धा की करुण पुकार सुनकर नहीं पसीजा। मगर, अब इस बुजुर्ग महिला की करुण पुकार को सुनकर राजधानी की कड़कडड़ूमा कोर्ट ने उसे न्याय दिलाने की ठोस पहल की है। अदालत के दखल के बाद बुजुर्ग महिला को पूरा न्याय तो न सही मगर, न्याय की पहली किरण फूटती हुई जरूर दिखाई दी है। अदालत के सख्त रवैये के बाद आखिरकार गीता कालोनी थाना की पुलिस ने वारदात के आठ साल बाद बुजुर्ग महिला के बेटे की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया है और मामले की जांच भी शुरू कर दी है। महानगर दंडाधिकारी सुरभि शर्मा वत्स ने गांधी नगर निवासी 70 वर्षीय बुजुर्ग सतनाम कौर की शिकायत पर गंभीर रवैया अपनाते हुए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार भी लगाई और पुलिस की न्याय प्रणाली पर सवालिया निशान भी लगाए हैं। अदालत ने कहा कि हत्या जैसे गंभीर मामले में पुलिस द्वारा मुकदमा दर्ज न करना चौंकाने वाला रवैया है। इस मामले में पुलिस मुकदमा दर्ज कर तुरंत जांच करे। अदालत के आदेश पर गीता कालोनी थाना की पुलिस ने 16 जुलाई 2006 को कंवलजीत की जहर देकर की गई हत्या का मामला दर्ज कर लिया है।
 
  यह था पूरा मामला

 गांधी नगर निवासी 70 वर्षीय बुजुर्ग विधवा सतनाम कौर ने पुलिस को दी अपनी शिकायत में कहा है कि वर्ष 2006 में उसके बड़े बेटे कंवलजीत व छोटे बेटे प्रीत पाल में गांधी नगर में 200 गज की एक प्रापर्टी को लेकर विवाद चल रहा था। इसी विवाद के चलते उसके बेटे प्रीतपाल ने अपने मित्र संजीव मित्तल व एक अन्य महिला के साथ मिलकर 16 जुलाई 2006 को कंवलजीत सिंह को जहर खिला दिया। मरने से पूर्व इस वारदात की सूचना कंवलजीत ने खुद 100 नंबर पर पुलिस को फोन करके दी थी। मगर, अस्पताल में बयान देने से पूर्व ही उसकी मौत हो गई थी। गीता कालोनी थाना की पुलिस ने इस मामले में आरोपियों से मिलीभगत कर कंवलजीत की मौत का मामला दर्ज नहीं किया। सतनाम कौर ने बताया कि उसने अपने बेटे की मौत पर इंसाफ के लिए अपनी बेटी हरविंदर कौर के साथ मिलकर पुलिस थाना, पुलिस अधिकारियों, दिल्ली के मंत्रियों के खूब चक्कर काटे। मगर उसे कहीं से भी इंसाफ नहीं मिला। उसने अदालत की भी शरण ली। महानगर दंडाधिकारी सुरभि शर्मा ने 14 मार्च को पुलिस को केस दर्ज करने का आदेश दिया। उसके बावजूद पुलिस ने केस दर्ज नहीं किया। आरोपियों ने इस फैसले को सेशन कोर्ट में चुनौती दी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पीएस तेजी ने 27 मई को उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद सतनाम कौर ने दोबारा से अदालत में अर्जी दायर की। इस बार अदालत ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई और 7 जून को मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिया। पुलिस ने केस दर्ज कर उसकी प्रति अदालत में दाखिल कर दी है। 

Wednesday, June 11, 2014

फैसले का लाभ उन्हें भी, जिन्होंने न्याय नहीं मांगा : हाईकोर्ट

पवन कुमार, नई दिल्ली-
 न्याय पर सभी का हक होता है। पैसे वालों का भी और गरीबों का भी। कई बार कुछ गरीब लोग पैसा न होने के कारण उन्हें मिली सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील नहीं कर पाते। इस तरह के मामलों में अगर कोई अपील दायर करता है व उसे लाभ मिलता है और यदि अदालत महसूस करती है कि यह लाभ उन लोगों को भी दिया जाना चाहिए जिन्होंने अपील दायर नहीं की तो अदालत इस संबंध में आदेश जारी कर अपने फैसले का लाभ ऐसे लोगों को दे सकती है। यह टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए अपहरण व लूटपाट के एक मामले में सुनवाई करते हुए की है। खंडपीठ ने मामले में निचली अदालत द्वारा सात साल कैद की सजा पाए अभियुक्त चंदन, अफजल व मुकेश को राहत प्रदान करते हुए मामले से बरी कर दिया है। इसके साथ ही खंडपीठ ने इसी मामले में अपील दायर न करने वाले दो अभियुक्तों करन व आकाश को भी राहत प्रदान करते हुए उन्हें भी मामले में बरी कर दिया है। खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दंडू लक्ष्मी रेड्डी बनाम महाराष्ट्र सरकार, जयपाल बनाम चंडीगढ़, जशुभा भरत सिंह गोहिल बनाम गुजरात सरकार और बाहुबली गुलाब चंद बनाम दिल्ली प्रशासन के मामलों में दिए गए निर्णयों का हवाला दिया। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में अभियोजन यह भी साबित करने में नाकाम रहा है कि पीडि़त प्रशांत पांडेय ने उसके साथ हुई घटना की शिकायत 15 दिन की देरी से क्यों पुलिस में दर्ज कराई। मामले में की गई देरी संदेह पैदा करती है। इतना ही नहीं, पुलिस ने वारदात में कथित रूप से इस्तेमाल की गई कार में से पीडि़त के फिंगर प्रिंट की जांच नहीं कराई है। पूरे मामले में जांच में कई खामिया हैं। ऐसे में अभियुक्तों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

  यह था पूरा मामला

पेश मामले में आदर्श नगर थाने में प्रशांत पांडेय ने 14 मार्च 2010 को अपहरण व लूटपाट का एक मामला दर्ज कराया था। पांडेय का कहना था कि 27 फरवरी 2010 को मुकरबा चौक, करनाल बाईपास स्थित एक प्री-पेड टीएसआर बूथ से उसने एक आटो वेस्ट पटेल नगर जाने के लिए लिया। जब उसका आटो आदर्श नगर फ्लाईओवर के पास पहुंचा तो पीछे से एक मारुति कार अचानक आई और ऑटो के आगे लगाकर रोक दिया। उसमें से तीन-चार युवक उतरे और उन्होंने देसी कट्टे के बल पर जबरन उसका अपहरण कर उसे कार में बैठा दिया। कार में छह युवक सवार थे। उन्होंने उसका लैपटॉप व दो मोबाइल फोन छीन लिए। इसके बाद उसका एचडीएफसी बैंक का एटीएम कार्ड छीना और उसके माध्यम से दुर्गापुरी व मौजपुर के एटीएम से 10-10 हजार रुपये निकलवाए। बाद में उन्होंने उसे उस्मानपुर के पास कार से फेंक दिया और फरार हो गए। वह डरा हुआ था इसलिए सीधे अपने गांव चला गया। वापस लौटने पर उसने पुलिस को शिकायत दी। पुलिस ने मामले में जांच के बाद चंदन, अफजल, मुकेश, करन, आकाश व नासिर को गिरफ्तार किया था। निचली अदालत ने मामले में नासिर को बरी कर दिया था, जबकि अन्य पांचों को सात साल कैद की सजा सुनाई थी। इस निर्णय को चंदन, अफजल व मुकेश ने हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी जबकि करन और आकाश ने कोई याचिका दायर नहीं की थी।

Tuesday, June 10, 2014

यो मत पूछ मन्‍नै तू िकतणी प्‍यारी सै

यो मत पूछ मन्‍नै तू िकतणी प्‍यारी सै, 
 तू ए मेरे मन के आंगण की फुलवारी सै।। 

 आग बुझे चूल्‍हे सा हो ज्‍या मेरा मन,
 जब देखूं िक तेरी मायके की तैयारी सै। 

 खेत मेरे िदल का तेरे िबना बंजर सा हो रहया था, 
तू हे उसमैं उपजी सरसो की क्‍यारी सै।

 यो मत पूछ मन्‍नै तू िकतणी प्‍यारी सै,,,,,,

Thursday, June 5, 2014

सभी धर्मो के लिए एक समान कानून संभव नहीं

पवन कुमार, नई दिल्ली- भारत में सभी धर्मो के लोग रहते हैं। सभी धर्मो के अपने अलग-अलग नियम, नीतियां एवं मान्यताएं हैं। ऐसे में यह संभव नहीं हो सकता कि सभी धर्मो के लिए एकसमान कानून बनाया जाए। यह टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी व न्यायमूर्ति आरएस एंडलॉ की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए की है। खंडपीठ ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें केंद्र सरकार को सभी धर्मो पर लागू होने वाला एकसमान कानून बनाने का निर्देश देने की माग की गई थी। खंडपीठ ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के कई अन्य निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि अदालतें संसद के काम में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। न ही अदालतें विधायिका को यह निर्देश दे सकती हैं कि वह इस तरह का कोई कानून बनाए। इतना ही नहीं हमारे देश में संविधान में सभी धर्मो के लोगों को अपना-अपना धर्म व जाति मानने की अनुमति दी गई है। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि आज के समय में एक ऐसा कानून बनाने की जरूरत है, जो सभी देशवासियों पर एकसमान से लागू हो परतु ऐसा करना एकदम से संभव नहीं है। कानून में बदलाव की प्रक्रिया धीमी है, लेकिन फिर भी जहा भी जरूरत होती है, वहा पर कानून में बदलाव किए जा रहे है। ऐसे में यह सोचना गलत होगा कि एकदम से ऐसा कानून बना दिया जाए जो सब पर समान रूप से लागू हो। इसलिए इन तमाम फैसलों को ध्यान में रखते हुए इस जनहित याचिका को खारिज किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि मूलचंद कुचेरिया नामक व्यक्ति ने इस मामले में जनहित याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 1995 में सरला मुदगिल बनाम केंद्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला देते हुए एकसमान रूप से सभी पर लागू होने वाला कानून बनाने का सुझाव दिया था। इसलिए उन सुझावों को एक निश्चित समय में लागू किया जाए। साथ ही सभी धर्म गुरुओं व धर्म विशेषज्ञों की एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई जाए, जो इस संबंध में बनाए गए दिशा-निर्देशों को लागू करवा सकें। ज्ञात हो कि सरला मुदगिल नामक मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हिदू पति द्वारा इस्लाम कबूल करने के बाद दूसरा विवाह करने का मामला उठाया गया था। जो भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत मान्य नहीं है।